महादेव गोविन्द रानाडे वाक्य
उच्चारण: [ mhaadev gaovined raanaad ]
उदाहरण वाक्य
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- में महादेव गोविन्द रानाडे ने एक भाषण दिया।
- में महादेव गोविन्द रानाडे ने एक भाषण दिया।
- टैगोर (सी) महादेव गोविन्द रानाडे (डी) केशव चन्द्र सेन
- जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे और रमाबाई रानाडेᄉयह नया सम्बंध थाᄉइसी आंदोलन की देन।
- महादेव गोविन्द रानाडे ' दकन एजुकेशनल सोसायटी ' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे।
- आचार्य केशवचन्द सेन की प्रेरणा से महादेव गोविन्द रानाडे, डा. आत्माराम पांडुरंग तथा चन्द्रावरकर द्वारा प्रार्थनासमाज की स्थापना बंबई में 31 मार्च, 1867 को हुई
- महादेव गोविन्द रानाडे ने कहा है, “राष्ट्रीय पूँजी का एक तिहाई हिस्सा किसी न किसी रूप में ब्रिटिश शासन द्वारा भारत से बाहर ले जाया जाता है।”
- महादेव गोविन्द रानाडे (जन्म-18 जनवरी, 1842-मृत्यु-16 जनवरी, 1901) भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान और न्यायविद थे।
- इसी के चलते गोपाल कृष्ण गोखले, महादेव गोविन्द रानाडे से लेकर बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपतराय जैसों ने अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित की थीं।
- गोखले के अन्तर्निहित गुणों के विकास में महादेव गोविन्द रानाडे, अर्थशासत्र के प्राध्यापक पद से महाराष्ट उच्च न्यायलय के न्यायाधीश पद की यात्रा करने वाले महामानव की भूमिका महात्वपूर्ण थी।
- ब्रह्मसमाज के विचारों के समान ही डॉ. आत्माराम पाण्डुरंग ने 1867 में महाराष्ट्र में 'प्रार्थना समाज' की स्थापना की जिसे आर.जी. भण्डारकर और महादेव गोविन्द रानाडे जैसे व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त हुआ।
- इस महान कार्य के प्रणेताओं के रूप में राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, कर्नल एच0एस आलकाट, एनी बेसेंट, स्वामी विवेकानन्द, महादेव गोविन्द रानाडे आदि समाज सुधारकों को भारतीय पुर्नजागरण की धूरी कहा जा सकता है।
- तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रवादी नेताओं में प्रमुख थे-दादाभाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, फ़िरोजशाह मेहता, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, दीनशा वाचा, व्योमेश चन् द्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय आदि।
- ब्रह्मसमाज के विचारों के समान ही डॉ. आत्माराम पाण्डुरंग ने 1867 में महाराष्ट्र में ' प्रार्थना समाज ' की स्थापना की जिसे आर. जी. भण्डारकर और महादेव गोविन्द रानाडे जैसे व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त हुआ।
- अन्य अहिन्दीभाषी विद्वज्जन यथा-केशव चन्द्र, महादेव गोविन्द रानाडे, बाल गंगाधर तिलक, महर्षि अरविंद, कस्तूरी रंगायंगर, सुब्रह्मण्यम अय्यर आदि भी पीछे न रहे और इन्होंने अपने सद्प्रयासों से हिन्दी का सम्मान स्थापित किया, उसे प्रतिष्ठा दिलवाई।
- स्वामी रामकृष्ण, परमहंस, स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, महादेव गोविन्द रानाडे, रामकृष्ण भंडार कर जैसे भारत के सुपुत्रों को यह श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने अपनी विद्वता कर्मठता और निर्भीकता से भारतीयों के हृदय में श्रेष्ठत्व की इस भावना का संचार किया।
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